इससे कुछ दिनों पहले शम्मी कपूर के निधन की खबर पढ़ी. बहुत छोटा था तो शायद जंगली देखी थी, श्वेत - श्याम टेलीविजन पर. उसका गीत "चाहे कोई मुझे जंगली कहे" जुबान पर चढ़ गया था. शम्मी जी को पर्दे पर देखता तो लगता कि काश मैं भी ऐसा बन सकूं, हर समय ऊर्जा से ओत-प्रोत युवक. मानो उनके अन्दर कोई ऐसी बैटरी लगी थी जो हर समय ही फुल चार्ज्ड रहती. आखिर कोई व्यक्ति कैसे इतना ऊर्जावान, इतना मस्त हो सकता है. बाद में यह समझ में आया कि पर्दे पर तो एक कैरेक्टर प्ले करना पड़ता है अभिनेता को. उसके बाद भी मेरे मन से वह छवि कभी विखंडित नहीं हुई. बल्कि उस छवि से मैं निरन्तर ऊर्जा प्राप्त करता रहा. पत्र - पत्रिकाओं से पता चलता रहा कि शम्मी जी कभी रिटायर नहीं हुये, बल्कि हमेशा अपने लिये नये जमाने के साथ जोड़े रहे. मृत्यु एक अटल सत्य है. समय के इस दरिया में न जाने कितने लोग प्रवाहित हो गये और रह गयीं तो सिर्फ यादें.
जो मन में आया वह सब आपके सामने. सर पर मैला ढ़ोते लोगों को देखकर मन कराह उठता है. मुझे लगता है कि सहानुभूति के स्थान पर स्वानुभूति अपनाना बेहतर है. बढ़ती जनसंख्या, पर्यावरण का विनाश और पानी की बर्बादी बहुत तकलीफ देती है. दर्द उस समय और भी बढ़ जाता है जब कानून का पालन कराने वाले ही उसे तुड़वाते हैं.
Sunday, August 28, 2011
डा० अमर कुमार और शम्मी कपूर - अब स्वर्गीय.
इससे कुछ दिनों पहले शम्मी कपूर के निधन की खबर पढ़ी. बहुत छोटा था तो शायद जंगली देखी थी, श्वेत - श्याम टेलीविजन पर. उसका गीत "चाहे कोई मुझे जंगली कहे" जुबान पर चढ़ गया था. शम्मी जी को पर्दे पर देखता तो लगता कि काश मैं भी ऐसा बन सकूं, हर समय ऊर्जा से ओत-प्रोत युवक. मानो उनके अन्दर कोई ऐसी बैटरी लगी थी जो हर समय ही फुल चार्ज्ड रहती. आखिर कोई व्यक्ति कैसे इतना ऊर्जावान, इतना मस्त हो सकता है. बाद में यह समझ में आया कि पर्दे पर तो एक कैरेक्टर प्ले करना पड़ता है अभिनेता को. उसके बाद भी मेरे मन से वह छवि कभी विखंडित नहीं हुई. बल्कि उस छवि से मैं निरन्तर ऊर्जा प्राप्त करता रहा. पत्र - पत्रिकाओं से पता चलता रहा कि शम्मी जी कभी रिटायर नहीं हुये, बल्कि हमेशा अपने लिये नये जमाने के साथ जोड़े रहे. मृत्यु एक अटल सत्य है. समय के इस दरिया में न जाने कितने लोग प्रवाहित हो गये और रह गयीं तो सिर्फ यादें.
Saturday, August 13, 2011
पिछले दिनों जिन चीजों ने झकझोरा
उत्तर प्रदेश में भूमि अधिग्रहण व्यवस्था में संशोधन कर दिया गया है, अब सरकार जिस जमीन को अधिग्रहीत कर लेगी उसे कभी वापस नहीं किया जा सकेगा, फिर वह जमीन वर्षों तक बेकार ही क्यों न पड़ी रहे. विपक्ष अब चिल्ला रहा है कि कैसा संशोधन पारित हो गया.
कांवरिये बरसों से जिस मार्ग से निकलते आते रहे हैं, उस इलाके में अल्पसंख्यकों (मुस्लिमों) की संख्या बढ़ जाए तो फिर कांवरियों के निकलने से भावनाएं आहत होती हैं, किन्तु हिन्दुओं की अधिकता वाले इलाकों में निर्धारित मार्ग से ताजियों के निकलने से हिन्दुओं को कोई परेशानी नहीं होती.
एक पत्रकार कह रहे हैं कि अन्ना ने चार लाख फ़ार्म बांटे, लेकिन अस्सी हजार वापस मिले अर्थात लोगों ने अन्ना को नकार दिया. मुझे नहीं लगता कि यही बात वे हमारे चुने गए जन-प्रतिनिधियों के बारे में लिखेंगे. आखिर चालीस- पचास प्रतिशत लोग किसी को वोट नहीं देते और जीतने वाला कुल मतों का बीस - पच्चीस प्रतिशत पाकर जीत जाता है तो फिर ये भी तो नकारे हुए हैं.
आरक्षण फ़िल्म को देखे बिना ही विवादित बना दिया गया है. इस फ़िल्म से आरक्षण पर कोई प्रभाव पड़ेगा, नहीं लगता. लेकिन नेता हैं कि दलितों का सबसे बड़ा हितैषी दिखने के लिए फ़िल्म का विरोध करने पर उतारू हैं. आरक्षण की इस व्यवस्था में अल्पसंख्यकों को लाने से क्या प्रभाव पड़ेगा, उस पर ध्यान देने की आवश्यकता है. अब इस फ़िल्म में क्या है, देखने से ही पता चलेगा.
कश्मीर के अलगाव-वादी नेता (?) अब तय करेंगे कि किसे फाँसी हो और किसे नहीं, मीर वाइज उमर ने एक बयान में कहा है कि अफजल को फाँसी होने पर परिणाम गंभीर होंगे. मतलब भारत की सर्वोच्च संस्था पर हमला करने वाले को इसलिए फांसी न दी जाए कि मीर वाइज की ऐसी ही मर्जी है. ये तो राष्ट्रपति और संसद से भी बड़े हो गए.
लखनऊ में एक चाय वाले को एक मुस्लिम बच्चा मिला, जिसे उसने पाला-पोसा और मुस्लिम नाम ही रखा रहने दिया. उसने उस बच्चे के माँ-बाप को खोजा किन्तु वे नहीं मिले. कई वर्षों बाद उसकी माँ को पता चला और अब उसने एक दलील यह भी दी है कि उस बच्चे को हिन्दू के यहाँ रहने पर सांप्रदायिक तनाव भी हो सकता है.
राहुल भैया, महाराष्ट्र के किसानों की छाती पर गोलियां चली हैं. उनपर भी नजर डालिए. वहां भी किसान मरे हैं, वे किसान जो सर्दी-गर्मी-बरसात झेलकर हमारा पेट भरते हैं.
Subscribe to:
Posts (Atom)